(शुभ कार्य की निर्विघ्न सम्पन्नता हेतु पुरोहित किसी दोने या थाली
में गोबर से गणेश बनाकर मंत्रों द्वारा उसकी प्रतिष्ठा एवं वन्दना करता है। साथ में
गिदार वगैरह श्रीगणेश का गुणगान करती चलती हैं)
जय-जय गणपति जय हेरंब
सिद्धि विनायक एकदंत
एकदंत शुभ्रवर्ण गंवरि के नंदन
मूषक वाहन सिंदुरी सोहै
अग्नि बिना होम नहीं,
ब्रह्म बिना वेद नहीं
पुत्र धन दायक यज्ञ रचाये ….
शुभ जय गणपति लगन की बेर ए
आरंभ रचियले शंकर देव
मोती माणिक हीरा चौका पुरीयले
सुवरन भरिये कलशन ए
तसु चौका बैठला रामीचंद्र, लछीमन विप्र ए।
ज्यों लाडली सीतादेवी
बहूरानी काज करैं, राज रचे
फूलनी चै फलनी चै
जाई की वान्ती लै
फूल ब्यौणी ल्यालो बालो
आपू रूपी माणि ए
मोती माणिक हीरा
चौक पुरीयले…