जहां तक अभिनेत्रियों द्वारा निभाई गई विकलांग भूमिकाओं का सवाल है, फिल्म ‘छोटी बहन’ में नंदा, ‘पूजा के फूल’ में निम्मी, ‘चिराग’ में आशा पारेख, ‘अनुराग’ में मौसमी चटर्जी, ‘प्रतिमा और पायल’ में सारिका, ‘ईमान धर्म’ में अपर्णा सेन, ‘जनता हवलदार’ में योगिता बाली, ‘ब्लैक’ में रानी मुखर्जी ने अंधी लड़कियों का जानदार अभिनय किया।
फिल्म ‘जीने की राह’ में तनुजा और फिल्म ‘विश्वनाथ’ में रीता भादुड़ी ने लंगड़ी लड़कियों का किरदार निभाया। ‘सदमा’ में श्रीदेवी, ‘सरगम’ में जयाप्रदा, ‘पायल’ में भाग्यश्री, ‘सातवां आसमान’ में पूजा भट्ट, ‘रखवाला’ में शबाना आजमी, ‘लाड़ला’ में फरीदा जलाल आदि ने भी विकलांग पात्रों की सराहनीय भूमिकाएं निभाकर अपनी विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया।
विक्षिप्त लड़कियों की भूमिकाओं में जान डाल देने वाली अभिनेत्रियों में से फिल्म ‘सीमा’ में नूतन या फिल्म ‘मिलन’ में जमुना की अदाकारी का स्मरण हो आना अथवा फिल्म ‘मेरे लाल’ में इ्रद्राणी मुकर्जी का भटकते हुए यह गाना याद आना अस्वाभाविक नहीं कि – बादल रोया, नैना रोए, सावन रोया ….. तू ना मिला।