यूं तो प्रकृति स्वयं भी समय समय पर अपने तत्वों में असंतुलन उत्पन्न करके पर्यावरण प्रदूषण का
कारण बनती है; जैसे :- भूकंप, ज्वालामुखी, समुद्री तूफान अथवा भूस्खलन आदि। लेकिन ऐसा
सदैव नहीं होता, अतः उसका प्रभाव मानव जीवन के लिए शाश्वत समस्या नहीं बनता। जब मनुष्य
के क्रिया व्यापारों द्वारा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता हैए तब उसका प्रभाव मानव के सामने समस्या के
रूप में उपस्थित होता है।
प्रदूषण के कारणों में निरंतर बढ़ती आबादी को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जाता है। आबादी वृद्धि
से उत्पादन की मांग बढ़ती हैए उत्पादन बढ़ने से कूड़ा करकट तो बढ़ता ही है, उत्पादनों की गुणवत्ता
में ह्रास होने लगता है या मिलावट की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। उत्पादन के लिए उद्योग और उद्योगों
के लिए वाहन बढ़ने से वातावरण में धुंए की मात्रा बढ़ती है।