महबूब खान की बहुचर्चित फिल्म ‘मदर इंडिया’ में राजकुमार के अपंग हो जाने के बाद का मानसिक तनाव
उनकी मुखमुद्राओं एवं चेष्टाओं में प्रतिबिंबित होता है। इसी फिल्म से उभरे अभिनेता सुनील दत्त फिल्म ‘खानदान’
में एक लूले व्यक्ति की भूमिका अत्यंत स्वाभाविक रूप से जी चुके हैं। फिल्म ‘कर्मा’ में नसीरुद्दीन शाह का भी
एक हाथ कुछ गड़बड़ था।
दिल से ही नहीं, दिमाग से भी काफी रईस गुरुदत्त फिल्म ‘बहूरानी’ में एक विक्षिप्त पात्र की भूमिका अदा करके अपनी तरह की अनोखी मिसाल कायम कर चुके हैं। अमोल पालेकर ने फिल्म ‘सोलहवां सावन’ में अपंग पात्र का सहज अभिनय किया। फिल्म ‘आदमी’ में दिलीप कुमार तथा ‘अगर तुम न होते’ में राज बब्बर के विकलांग अभिनय में दैहिक व्यथा के साथ साथ मानसिक तनाव भी समन्वित है।
अंधे लंगड़े पात्रों की जोड़ी के रूप में सुधीर कुमार एवं सुशील कुमार के अभिनय ने फिल्म ‘दोस्ती’ की अपार लोकप्रियता में काफी हाथ बंटाया। इसी तरह गूंगे बहरे दंपति की भूमिका में संजीव कुमार और जया भादुड़ी ने फिल्म ‘कोशिश’ में अभिनव कीर्तिमान स्थापित किए। इसी भूमिका में नाना पाटेकर ‘खामोशी’ में कमाल कर गए।