आज आप जब मेट्रो में घुसते है, तो वहां जो लोग बैठे हुए हैं, उनमें बहुत कम ऐसे खुशनसीब
होते हैं, जो घुसते ही बैठ गए थे। ज्यादातर लोगों को काफी देर खड़े रहने के बाद ही बैठने की
जगह मिली होती है। इसी तरह बड़े बड़े संस्थानों के ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठे हुए लोग भी जब वहां
आए थे, तब उनके भावहीन चेहरे देखने लायक थे।
मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने वाले ज्यादा नहीं होते। आम आदमी अगर आज किसी
खास पोजीशन में है, तो वहां तक वह ऐसे ही नहीं पहुंचा होता है। उसके पीछे उसकी लगन होती
है, मेहनत होती है। वह सिर्फ परिस्थितियों से ही नहीं जूझता, मनस्थितियों को भी झेलता है;
इसलिए बिग बाॅस के घर में आराम से रहता है।