‘किसी छोटे क्षेत्र की ऐसी व्यक्ति भाषाओं का सामूहिक रूप जिनमें आपस में कोई स्पष्ट अन्तर न हो,
स्थानीय बोली या उपबोली कहलाता है।’ इस परिभाषा के सन्दर्भ में एक बात और कि चम्पावत के
चन्द राजाओं के शासन काल में रानियों और दरबारियों की पत्नियों के लिए चूडि़याँ बनाने/पहनाने के
उद्देश्य से बाहर से लाकर बसाए गए मुसलमान मनिहार भी सदियों से वहीं बस जाने के कारण कुमैयाँ
बोली बोलते हैं, पर उनके बोलने के अन्दाज का निरालापन और शब्दावली में अरबी-फारसी का मिश्रण
उनकी बोली को एक निजी वैशिष्ट्य प्रदान करता है।
इस विशिष्टता के कारण मनिहारों की बोली को मनिहारी नाम दे दिया गया है। मनिहारी को कुमैयाँ बोली
की विशिष्ट उपबोली माना जा सकता है, क्योंकि कुमैयाँ तथा मनिहारी की ध्वन्यात्मक एवं संरचनात्मक
विभिन्नता नगण्य प्रतीत होते हुए भी सदियों से उनकी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए हुए है।
कुछ टुकड़े उदहारण के लिए डाल देते गुरूजी तो आनंद आ जाता
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