एक आभास है
मन तो आकाश है
देह का तत्व पर देह में ही नहीं
या तो बाहर है या आस ही पास है
बेसहारे की सरहद नहीं है कहीं
सिर्फ फैलाव आता इसे रास है
अनकही आस है
अनबुझी प्यास है
मन तो आकाश है
उंची उंची उड़ानें भरे है सदा
चाल इसकी गजब है अनायास है
खाब में भी भटकता है जागे में भी
क्या पता कौन सी लालसा खास है
मोह संसार है
द्रोह संन्यास है
मन तो आकाश है