सूना सा लागे संसार
छेड़ो प्रिय! मन का सितार
पेड़ों की शाखों पर बैठ गई शाम
दिन भर के थके पांव ढूंढें आराम
मंद हुई नदिया की धार
छेड़ो प्रिय! मन का सितार
नीड़ों में बंद हुए कलरव के गान
पंखों में सिमट गई दूर की उड़ान
अंतर से उठती पुकार
छेड़ो प्रिय! मन का सितार