जरा जर्जरित देह
स्वयं के लिए बवाल बनी
जिंदगी आज सवाल बनी
बचपन की चंचल निर्झरिणी
नदिया बनी जवानी की
चंट इंद्रियों ने लहराकर
पनघट पर मनमानी की
सूख गया जब स्रोत
रेत जी का जंजाल बनी
जिंदगी आज सवाल बनी
फुटकर में बिक गई उमरिया
लाए थे जो थोक में
भोगों के तैराक हर्ष
खुद डूब गए जब शोक में
जीने की हर चाह
मौत की खास दलाल बनी
जिंदगी आज सवाल बनी