भारतीय जीवन में धर्म को विशेष महत्व प्राप्त है, अत: जन्म से मृत्यु पर्यन्त विविध
अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। ऐसे संस्कारों की संख्या महर्षि व्यास ने सोलह मानी है –
गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तो जातकर्म च
नामक्रिया निष्क्रमणो अन्न्प्राश्नम वपनक्रिया
कर्णवेधो व्रतादेशो वेदारम्भ: क्रियाविधिः
केशान्त स्नानमुद्वाहो विवाहाग्नि -परिग्रह:
प्रेताग्नि संग्रहश्चैव संस्कारा षोडसस्मृत: (व्यासस्मृति : १, ३-१४)
पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित वर्तमान जीवन पद्धति में दो नए संस्कार बढ़े हैं –
जन्म-दिवसोत्सव तथा विवाहदिवसोत्सव; जिनके कारण हर घर में परिजनों एवं
इष्ट-मित्रों के साथ प्रमुदित होने के अवसर आते हैं और जो सामाजिक स्नेह-सौहाद्र
की अभिवृद्धि की दृष्टि से भी लोकप्रिय प्रतीत होते हैं।