क्रमशः
एक रात स्वैंण में उ चेलि लै आपणि इज कैं अइ द्योख। इजैलै उथैं पुछः ‘‘चेली, तु दुबलि किलै है गेछी ?
कि दुख व्यापि गो तुकै ?’’ उ स्वैंणैं मैं आपण इजहुं बुलाणिः ‘‘इजू, मैं बडि़ दुखी है गयुं। यां त मैं कै भर
पेट खाण लै निं मिलन। मैें यां निं रूंन्यूं इजा, मैं लै त्यारै दगाड़ा उंछु।’’ इजै लै उथैं कयोः ‘‘चेली, तु दुख
निं कर। भोल रत्तै बै मैं पार उ पिपलाका बोटाका मुणि तिहुं एक थाइ में खाण धरि जूूंल, तु एकली जै बेर खै अयै।’’ दुसारा दिन रत्तै जब उ चेलि पिपलाबा बोटाका मुणि गई त वां एक थाइ भर भल भल खाण उहुं धरिय मिल। उ दिन वै रोज रत्तै जै बेर उ आपणि इज क धरिय खाण खै उनेर भइ। एसिकै कतुक दिन बिति गे।
सौतेलि मै लै जब द्योख कि उ चेलि त दिन औरी रात औरी दोखाल हुणैछ त एक दिन वीक वीक द्वाब कर और
जब उकैं पिपलाका बोटाका मुणि जैबेर भल भल खाण देखो त दुहार दिन बै वीक घर बै भैर जाण बंद करवै दिय। फिरि वीकि इज स्वैंण अई आपणि चेलि थैं पुछ कि तु पिपलाका बोटा का मुणि किलै निं उंनी। चेलि लै सब बात
बतै त इजं ल कयोः ‘तु आपण बाबु थैं कैबेर एक बाकरि पालि ल्हे। त्योरो सब दुख दूर है जालो।’’ चेलिल उसै कर। बाकरि रोज व्याल हुं विथैं ए बेर आपण थौंण बै उकैं दूद पिवै दिनेर भइ। सौतेलि मै लै फिर द्वाब करो और बाकरि कैं मारि मूरि बेर आंगण में खड्यै दियौ। (क्रमशः)