जिस तरह साहित्य अतीत के प्रकट या संभावित पृष्ठों को कल्पना की कसौटी पर
कसकर विविध विधाओं के माध्यम से अनावृत करता है, उसी तरह सिनेमा भी
इतिहास की महत्वपूर्ण विभूतियों या घटनाओं को कला की दृष्टि से परख कर दृश्यों
एवं संवादों के माध्यम से प्रदर्शित करता है। सिनेमा की अभिव्यक्ति प्रत्यक्ष होने के
कारण साहित्य की अपेक्षा अधिक रसानुभूति कराती है।
देश की आजादी का सपना देखने वाले बंदों में बसंती चोला पहन कर निकलने
वाले दीवानों की उमंग का रंग इतिहास के पन्नों में सोने की तरह दमकता है।
जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे
जिस पहन झांसी की रानी मिट गई अपनी आन पे
आज उसी को पहन के निकला हम मस्तों का टोला
मेरा रंग दे बसंती चोला