दहशत से मायूस हो गए सारे जंगल पेड़ों के
किसने देखे जख़्म ए जिगर इन गम से बोझिल पेड़ों के
देश निकाला भोग रहे हैं पेड़ाें पर रहने वाले
कुर्सी-सोफों पर बैठे हैं असली कातिल पेड़ाें के
भटक रहीं हैं गर्म हवाएँ अनचाहे वीरानों में
दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं साहिल पेड़ाें के
जिनके आने पर वह पहले झूम-झूम लहराते थे
उनकी आहट से अब काँपा करते हैं दिल पेड़ाें के