प्रकृति के रागात्मक गुणों की संपन्नता मदनोत्सव अथवा बसंत ॠतु में
सम्यक् रूप से प्रतिफलित होती है। अत: साहित्य एवं सिनेमा में बसंती
प्रसंगों की रोचक उपस्थिति अस्वाभाविक नहीं। हिंदी सिनेमा के पर्दे पर
‘गंगा जमना’ की धन्नो के बाद जमने वाला ‘शोले’ की बसन्ती का
रंग बरसों बाद भी चोखा और ताजा प्रतीत होता है। फिल्म ‘उपकार’
के एक गीत के अनुसार –
पीली-पीली सरसों फूली,
पीली उड़े पतंग
पीली-पीली उड़ी चुनरिया,
पीली पगड़ी के संग
गले लगाकर दुश्मन को भी
यार बनालो कहे मलंग