पुराकथाओं के अनुसार मदन श्रीकृष्ण के घर में पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में जन्मे थे, अत: कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मदन की पूजा करने से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। एक मान्यता यह भी है कि जब हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद ने राक्षसी धर्म को स्वीकार नहीं किया, तो उन्हें शुक्राचार्य के पुत्र शंडामर्क के आश्रम में भेजा गया। वहां शंडामर्क प्रह्लाद को वांछित शिक्षा प्रदान करने में असफल रहे, पर प्रह्लाद शंडामर्क के शिष्यों को नारायण मंत्र देने में सफल हो गये। जिस दिन प्रह्लाद ने यह करिश्मा किया था, वह बसंत पंचमी का ही दिन था। इसलिए इस दिन पीतांबर विष्णु की आराधना का भी प्रचलन है।
‘मात्स्यसूक्त’ तथा ‘हरिभक्ति विलास’ आदि ग्रन्थों में बसंत पंचमी को वसंत का प्रादुर्भाव दिवस माना गया है। ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ में वसंतावतार का दिन सुवसंतक कहा गया है। ‘कामशास्त्र’ में सुवसंतक नामक उत्सव का उल्लेख है, जिसमें मदन देवता की पूजा की जाती है। इस देवता का सहज व्यापार रचना और सजना है। इस उत्सव का मूल भाव सौन्दर्य का सम्मान है।